Ram Mandir Pran Pratishtha Time: प्रभु श्री राम जन-जन के मानस में आस्था के एक केंद्र कहे जाते हैं | 22 जनवरी 2024 को राम जन्मभूमि अयोध्या में भव्य अभिषेक समारोह का आयोजन किया गया है | जिस समारोह में देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल होगी | इस Ram Mandir Pran Pratishtha Time के पावन अवसर पर भगवान श्री राम का चरित्र एवं उनके व्यक्तिगत आदर्श की स्मरण हम सभी को वाल्मीकि रामायण से जैसे पवित्र ग्रंथ से होती है |
आप सभी लोग भी कभी ना कभी Ram Mandir Pran Pratishtha Time रामायण को पढ़ा होगा या टेलीविजन पर देखा होगा | संपूर्ण रामायण का सारांश मर्यादा में रहकर एवं अपने वचन एवं कर्तव्य का पालन करना दिखाया गया है | यदि हम रामायण के मुख्य किरदार की भूमिका देखें तो, प्रभु श्री राम का ही नाम सबसे पहले आता है | कहां जाता है कि प्रभु श्री राम ने अपने वचन एवं कर्तव्य का पालन करते हुए अपने प्राण से प्रिय भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड का आदेश दे दिया था | इस वाक्य का प्रसंग रामायण के खंड उत्तर रामायण में मिलता है। आइये आपको Ram Mandir Pran Pratishtha Time पर राम की कहानी की जानकारी देते हैं |
Ram Mandir Pran Pratishtha Time
राम ने क्यों दिया लक्ष्मण को मृत्युदंड–Ram Mandir Pran Pratishtha Time
Ram Mandir Pran Pratishtha Time के शुभ अवसर पर कहानी सुने | एक बार की बात है स्वयं काल के देव यमराज मुनि अपना वेश बदलकर कर राजा राम के पास अयोध्या राजमहल के दरबार में आए | यमराज मुनि ने भगवान श्री राम से आग्रह किया कि, मैं आपसे अकेले में वार्तालाप करना चाहता हूं |
उसके बाद उन्होंने कहा कि मैं आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक आपकी और हमारी वार्तालाप चलती रहेगी, तब तक हम दोनों लोगों के बीच कोई व्यक्ति नहीं आएगा | यदि हम दोनों लोगों के वार्तालाप के बीच किसी व्यक्ति ने कदम रखा तो आपको उस व्यक्ति को मृत्यु दंड देना पड़ेगा | यह सुनकर प्रभु श्री राम थोड़ा सा आश्चर्य हुए परंतु उन्होंने कुछ सोच विचार कर उन्हें यह वचन दे दिया |
भगवान श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को यह कहकर द्वारपाल नियुक्त कर दिया कि जब तक उनकी और यमराज मुनि की वार्तालाप चल रही है, उस समय किसी भी व्यक्ति को दरबार में आने की अनुमति ना दी जाए | अन्यथा जो व्यक्ति उनके और यमराज मुनि के वार्तालाप के बीच आएगा उस व्यक्ति को मुझे मृत्युदंड देना पड़ेगा | यह सुनकर लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई राम की बात को आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर दरबार के मुख्य दरवाजे पर खड़े हो गए |
प्रभु श्री राम एवं यमराज मुनि की वार्तालाप अभी कुछ ही छड़ हुए, इधर इसी बीच अयोध्या के Ram Mandir Pran Pratishtha Time राजमहल में ऋषि दर्वासा प्रभु श्री राम से मिलने आ जाते हैं | वे श्री राम से मिलने की लक्ष्मण से आगृह करते हैं | परन्तु लक्ष्मण ने उन्हें मना करते हुए बोले, हे गुरुदेव प्रभु श्री राम किसी से अभी विशेष वार्तालाप कर रहे हैं और उन्होंने मुझे आदेश दिया है कि, जब तक यह वार्तालाप समाप्त न हो जाए, किसी भी व्यक्ति को अंदर आने मत देना | इसलिए आप अभी उनसे तत्काल नहीं मिल सकते | आप कुछ समय के लिए राजमहल में विश्राम कर लीजिए, तत्पश्चात मैं आपकी सूचना भैया राम के पास पहुंचा दूंगा |
और प्रभु श्री राम आपसे खुद मिलने आयेंगे |लक्ष्मण की बात सुनकर ऋषि दर्वासा क्रोधित हो गए | और उन्होंने कहा कि लक्ष्मण यदि तुमने इसी वक्त मेरी सूचना राम को नहीं पहुचाई तो, क्षण भर में पूरे अयोध्या को मैं श्राप देकर भस्म कर दूंगा | यह सुनकर लक्ष्मण डर गए और अपनी अयोध्या नगरी को बचाने के लिए अपने प्राणों की परवाह किए बिना, प्रभु श्री राम और यमराज मुनि के बीच चले गए | जाकर उन्होंने श्री राम को ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दी।
सूचना पाकर प्रभु श्री राम ने यमराज मुनि के साथ वार्तालाप को विराम दिया और ऋषि दुर्वासा को अंदर आने को लक्ष्मण से कहा | लक्ष्मण से कहते हुए प्रभु श्री राम को यह ध्यान आया कि, यमराज मुनि ने मुझसे यह वचन ली थी कि, हमारे और आपके बीच कोई भी व्यक्ति आने नहीं चाहिए | यदि कोई Ram Mandir Pran Pratishtha Time व्यक्ति आता है तो, उस व्यक्ति को राम के द्वारा मृत्युदंड दिया जाएगा | यह सोचकर प्रभु श्री राम दुविधा में पड़ गए | क्योंकि उन्हें अपने वचन के मुताबिक अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड देना है |
प्रभु श्री राम घोर संकट में पड़ गए | वे सोचने लगे कि अपने प्राण से प्रिय भाई को मृत्युदंड कैसे दें | परंतु यमराज मुनि द्वारा वचनबद्ध भी थे, जिसे उन्हें निभाना ही था |
इस घोर संकट के समय प्रभु श्री राम ने अपने गुरु का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा | गुरुदेव ने उन्हें कहा कि हे राम अपने किसी प्रिय का त्याग करना भी उसकी मृत्यु के समान ही है | अतः हे राम तुम अपने वचन का पालन करते हुए, अपने भाई लक्ष्मण का त्याग कर दो | तत्पश्चात प्रभु श्री राम ने अपने वचन एवं कर्तव्य का पालन करते हुए अपने प्राणों से प्रिय छोटे भाई लक्ष्मण का त्याग कर दिया | श्री राम के त्यागने के बाद लक्ष्मण ने इस दुख को सहन नहीं कर पाया |
उन्होंने सोचा की इस धरती पर रहकर क्या लाभ जब मेरे प्रभु राम मेरे पास रहेंगे ही नहीं | उसके बाद लक्ष्मण ने जल समाधि लेकर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर दिया |
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