Dr Bhimrao Ambedkar महापरिनिर्वाण दिवस क्यों मनाया जाता है? जानिए डॉ भीम राव अम्बेडकर और महापरिनिर्वाण दिवस का इतिहास 

Dr Bhimrao Ambedkar महापरिनिर्वाण: संविधान के जनक Dr Bhimrao Ambedkar का 6 दिसंबर 1956 को देहवासन हुआ था, जिस दिन को पूरे भारत में महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है | उनकी पुण्यतिथि को पूरे देश में महापरिनिर्वाण दिवस का नाम दिया गया। डॉ भीमराव अंबेडकर एक महान विद्वान एवं समाज सुधारक के रूप में जाने जाते हैं |

Dr Bhimrao Ambedkar

डॉ भीम राव अम्बेडकर अपने समाज के लिए अपना पूरा जीवन समाप्त कर दिया। उन्होंने अपने जीवन में समाज के लिए बहुत संघर्ष किये | उन्होंने जातिवाद को खत्म करने और अपने समाज गरीब दलित पिछले वर्गों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। Dr Bhimrao Ambedkar ने सभी धर्म से परेशान होकर व सभी धर्म से दुखी होकर उन्होंने वर्ष 1956 में बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। बौद्ध धर्म में परिनिर्वाण एक शब्द आता है, जो इस धर्म में प्रमुख सिद्धांतों लक्ष्य का एक योग माना जाता है | जिसका अर्थ होता है मौत के बाद निर्वाण | बौद्ध धर्म के मुताबिक जो व्यक्ति निर्वाण प्राप्त करता है, उस व्यक्ति की इच्छाएं व माया एवं सांसारिक सुख सब समाप्त हो जात है। वर्ष 6 दिसंबर 1956 को बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर की मृत्यु हुई, जिस दिन को पुण्यतिथि महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में लोग मानते हैं। इस दिन को लोग उनकी फोटो प्रतिमा पर फूल माला आदि चढ़ते हैं इस दिन लोग उनके विचारों को याद करते हैं |

 संविधान निर्माता संविधान के जनक कहे जाने वाले Dr Bhimrao Ambedkar, एक गरीब दलित एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए हमेशा समर्पित रहे। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर एक महान व्यक्तित्व एवं उच्च विचारों को धारण करने वाले व्यक्तित्व थे। आइये डॉ भीम राव अम्बेडकर जी के जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओ को जानें |

Dr Bhimrao Ambedkar का इतिहास

डॉ भीम राव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1991 में मध्य प्रदेश स्थित राज्य के महू नगर में हुआ था | उनके पिताजी का नाम रामजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था | इनके पिता के 14 पुत्र थे, जिसमे 14 पुत्र में केवल डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को ही पढ़ने का मौका मिला | डॉ भीम राव अम्बेडकर का परिवार हिंदू महार जाति से ताल्लुक रखता था, जो उसे समय एक दलित वर्ग के छोटे जाति वर्ग में गिनती होती थी | जिसके वजह से उनके समाज को सामाजिक और आर्थिक रूप से बहुत जादा भेदभाव व छुआछूत सहन करना पड़ा | परंतु Dr Bhimrao Ambedkar के पूर्वज ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में कार्य करते थे, और उनके पिता राम जी सकपाल भारतीय सेवा में कार्यरत थे | जिसकी वजह से उन्हें थोड़ा पढ़ने का और आगे बढ़ने का एक अवसर प्राप्त हुआ।

Dr Bhimrao Ambedkar महापरिनिर्वाण दिवस

निम्न जाति के होने के कारण Dr Bhimrao Ambedkar को समाज में छुआछूत भेदभाव इस तरह के अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। निम्न जाति के होने कारण उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय में पढ़ाई करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर के पिता राम जी सकपाल ने उनका एडमिशन सतारा के एक गवर्नमेंट हाई स्कूल में 7 नंबर 1900 को  कराया | उनके पिजा जी ने उनका नाम स्कुल में ‘राम जी आवम्बेडकर’ लिखवाया | बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर का बचपन का मूल उपनाम भी सकपाल था | उस स्कूल में एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्ण केशव से अंबेडकर जी बहुत स्ननेह रखते थे | कृष्णा जी ने आवम्बेडकर नाम हटाकर अंबेडकर उपनाम जोड़ दिया तब से बाबा साहब अंबेडकर को अंबेडकर नाम से जाना गया।

डॉ भीमराव अंबेडकर जब 15 वर्ष के थे तब उनकी शादी 9 साल की लड़की रमाबाई से कर दी गई | उस समय भारत में छोटे-छोटे उम्र में सादिया कर दी जाती थी | यानी उसे समय बाल विवाह का प्रचलन था |

Dr Bhimrao Ambedkar जी की शिक्षा 

डॉ भीम राव अम्बेडकर ने 1907 में मैट्रिक पास किया उसके बाद 1912 तक उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान की डिग्री प्राप्त की |

अंबेडकर

कोलंबिया विश्वविद्यालय में शिक्षा: सन 1913 में डॉ भीम राव अम्बेडकर अमेरिका चले गए | जिस समय वे गए उस समय उनकी आयु मात्र 22 वर्ष की थी | अमेरिका जाकर उन्हें ‘सयाजीराव गायकवाड’ द्वारा एक योजना के अंतर्गत, उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय में शिक्षा प्रदान करने के लिए, उनको कुछ आर्थिक सहायता प्रति माह मिलने लगे | जिसके वजह से उनकी पढ़ाई और बेहतर होने लगी |

सन 1916 में जैसलमेर उन्हें और अर्थशास्त्र में पीएचडी की पढ़ाई करने का अवसर प्राप्त हुआ। उसके बाद वह लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स जाकर उन्होंने बैरिस्टर कोर्स विधि अध्ययन के लिए प्रवेश लिया | और साथ ही इकोनॉमिक्स और विधि दोनों में प्रवेश लिया |

छुआछूत के बीच Dr Bhimrao Ambedkar

डॉ भीम राव अम्बेडकर का कथन है की छुआछूत गुलामी से भी बेहतर है | Dr Bhimrao Ambedkar बड़ौदा के रियासत द्वारा शिक्षा ग्रहण किए थे, इसलिए वह उनकी सेवा के लिए बधे थे | डॉ भीम राव अम्बेडकर को महाराजा गायकवाड का संघ सचिव के पद पर नियुक्त किया गया, परंतु समाज में चल रहे छुआछूत व भेदभाव और अनेक कारणों से उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी | इस घटना को डॉ भीम राव अम्बेडकर ने अपनी आत्मकथा वेटिंग फॉर विजा में विस्तार पूर्वक वर्णित किया है | कुछ समय बीतने के बाद उन्होंने अपने परिवार के लिए जीविका चलाने के लिए एक निजी शिक्षक के रूप में भी कार्य किया, परंतु जिनको शिक्षा देते उनको पता चला कि यह निम्न जाति का व्यक्ति है तो उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगे | उसके बाद उनके सारे व्यवसाय विफल साबित हो गए |

सन 1918 में मुंबई में स्थित स्टेडियम कॉलेज आफ कमर्स में राजनीतिक और अर्थशात्र के प्रोफेसर के रूप में चुने गए | उस कॉलेज में प्रोफेसर ने उनके साथ अजीब बर्ताव करते नजर आए | कभी ऐसा होता कि, उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता | हालांकि छात्रों के साथ उनका व्यवहार अच्छा रहा, छात्र भी उनके साथ अच्छी तरह से पेश आए, परंतु प्रोफेसर ने उनके साथ अजीब बर्ताव करते थे | इन सब घटनाओं से दुखी होकर डॉ भीमराव अंबेडकर ने दलित समाज को आगे बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किया | उन्होंने मुंबई उच्च न्यायालय में विधि का अभ्यास करते हुए उन्होंने अछूतों को शिक्षा की मांग की आवाज उठाई दलितों को शिक्षा को बढ़ावा बढ़ावा के लिए न्यायलय में आवाज उठाई |

डॉ भीम राव अम्बेडकर धर्म परिवर्तन

Dr Bhimrao Ambedkar जी हिंदू धर्म में अनेक कठिनाइयों का सामना कीये | उन्होंने अपने 10 से 12 साल हिंदू धर्म के अंतर्गत जीवन यापन करते हुए हिंदू समाज को सुधारने का अथक प्रयास किया, परंतु समाज में ऊँची जाति हिंदू का दिल नहीं पिघला और ना ही उनका हृदय परिवर्तन हुआ | उसके बाद डॉक्टर भीम राव अम्डबेकर का कथन “बाबा साहब ने कहा की हम लोग हिन्दू समाज में एक सामान रहने के के लिए एवं समानता का स्तर प्राप्त के लिए बहुत प्रयास किये परन्तु सब बेकार साबित हुए | यह समाज ऐसा है कि हिन्दू में छोटे जाति के लोगो लिए समानता, अधिकार एवं अभिव्यक्ति की कोई जगह नहीं है” | हिंदू धर्म के अनुयायियों यानि जो धर्म के देकेदार हैं, का कहना था कि, मनुष्य धर्म के लिए है | जबकि डॉ भीम राव अम्बेडकर का कहना था कि, धर्म मनुष्य के लिए है ना कि मनुष्य धर्म के लिए | बाबा साहब अंबेडकर ने कहा ऐसे धर्म का कोई अर्थ नहीं जिसमें मनुष्यता का कुछ भी मूल्य नहीं है | जो अपने ही समाज के लोगों को धर्म शिक्षा प्राप्त करने नहीं देता, उनको ठीक प्रकार से जीवन यापन करने नहीं देता  नौकरी करने का अधिकार नहीं देता, उन्हें अपमानित करता है, और यहां तक कि उनको प्यास लगने पर उनको पानी तक नहीं पीने देता है | ऐसे धर्म का कोई मतलब नहीं | इस प्रकार डॉक्टर डॉ भीम राव अम्बेडकर ने हिंदू धर्म को त्यागने का घोषणा किया | यह घोषणा हिंदू धर्म से दुश्मनी हिंदू धर्म के विनाश के लिए नहीं किया बल्कि अपने समाज के हित लिए एक सही रास्ता दिखाएं |

महापरिनिर्वाण

13 अक्टूबर 1935 को नासिक में एक सम्मेलन मैं भाषण देते हुए डॉ भीम राव अम्बेडकर ने अपने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की, उनका कथन इस प्रकार है की “हालांकि मैं एक अछूत हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में हरगिज नहीं मारूंगा”

जब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने यह घोषणा किया कि हम हिंदू धर्म छोड़ ऐसे धर्म में शामिल होंगें,  जो धर्म हमारे समाज के लिए हमारे लिए सबके लिए समान समान हो | इस वाक्य को सुनकर इस्लाम धर्म के संस्थापक निजाम एवं ईसाइयों मिशनरियों ने डॉ भीम राव अम्बेडकर को करोड़ों रुपए का प्रलोभन देकर उन्हें अपने धर्म में शामिल होने का प्रयास किया, परंतु उन्होंने साफ मना करते हुए बोला कि, अम्बेडकर ऐसे धर्म में शामिल होगा जो हमारे समाज के लिए हमारे लिए समान कार्य करता हो जिसमे कोई बड़ा न कोई छोटा हो | इस प्रकार उन्होंने सभी धर्म के अनुयायियों को उन्होंने ठुकरा दिया |

डॉ भीमराव अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। उनका कहना था कि सच्चा धर्म वह है जो विज्ञान तथा बौद्धिक को मानता हो ना की आत्मा और ईश्वर को मानता हो |

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